ये दुनियावालों
हम पीनेवालों का महजब ना पूछो
साकी की जात ना पूछो
मयख़ाने की गलियों की बहार ना पूछो
छलकते जामों की लय ताल ना पूछो
भुला दे जो हर गम
लगा लबों से अपने
उस मदिरा की चाल ना पूछो
डूब जाए जिसकी मदहोशी के आलम में
पूछो तो बस उस साकी के घर का पता पूछो
उस साकी के घर का पता पूछो
हम पीनेवालों का महजब ना पूछो
साकी की जात ना पूछो
मयख़ाने की गलियों की बहार ना पूछो
छलकते जामों की लय ताल ना पूछो
भुला दे जो हर गम
लगा लबों से अपने
उस मदिरा की चाल ना पूछो
डूब जाए जिसकी मदहोशी के आलम में
पूछो तो बस उस साकी के घर का पता पूछो
उस साकी के घर का पता पूछो
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (20-05-2014) को "जिम्मेदारी निभाना होगा" (चर्चा मंच-1618) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद महोदय
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