Saturday, October 21, 2017

पल दो पल

पल दो पल सकून से जी लेने दे ए जिंदगी

कुछ और नहीं

बस अपने आप से गुफ्तगूँ कर लेने दे ए जिंदगी

साँसों के अहसानों की रजामंदी में

ग़लतफ़हमी से खुशफ़हमी कर लेने दे ये जिंदगी

सफ़र वृतांत सारांश में

पुनः मासूमियत को तलाशने दे ए जिंदगी

हार के डर से नहीं जीत के ख़ौफ़ से

बदलते परिवेश को रूबरू होने दे ए जिंदगी

मिथ्या समझौतों के इस महा समर से

कुछ धड़कने मुझे उधार दे दे ए जिंदगी

कुछ और नहीं

पल दो पल सकून से जी लेने दे ए जिंदगी




2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-10-2017) को
    "एक दिया लड़ता रहा" (चर्चा अंक 2765)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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