Sunday, November 26, 2017

अकेली नींद

सपनों के आगे नींद मुक़म्मल होती नहीँ

हकीक़त से परे

बारात ख़्वाबों की थमती नहीं

परवाज़ अरमानों की

छूने गगन कम होती नहीं

नींद दर्पण हैं ख्वाइशों का

गल ए गले मिलती नहीं

बिखर ना जाए कही अरमानों के रंग

ऊहापोह के इस द्वन्द से संधि होती नहीं

नींद अकेली भी अब क्या करे

झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं

झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं 

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