POEMS BY MANOJ KAYAL
कह रहा है मन
हो तुम यही कही
घुल रही तेरी साँसों की खुशबू
इन हवाओं में यही
महका रही ह़र कलि इन फिजाओं में यही
बिखर रहा संगीत
तेरी पायल की छम छम से
करलो कितना भी जतन
छिपा ना खुद को पाओगे
दूर हम से रह ना पाओगे
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