POEMS BY MANOJ KAYAL
आधार जिसका हो जनाधार
मुक्त कंठो की प्रशंशा का वह है पात्र
बड़ा ही चतुर वह सुजान हो
जिसके हाथों में अवाम की लगाम हो
महारत पाली जिसने इस खेल में
समझो
बादशाहत उसकी जम गयी राजनीति के खेल में
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