Monday, September 24, 2012

गर्भ गृह

निखरती गयी चाँदनी

ज्यूँ ज्यूँ चन्दा बड़ता गया

आँचल के गर्भ गृह से निकल

यौवन मधुशाला रोशन करता गया

छिटकती किरणों से आफताब ऐसा रोशन हुआ 

शबनमी बूंदों सा आभा गुलाल खिलता गया

रूप लावण्य ऐसा सुन्दर निखरा

ज़माना मदहोश होता चला गया  !!

2 comments:


  1. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति, बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

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