सब जज्बातों की बात है
फ़िर अँधेरी रात है
सब जज्बातों की बात है
कही प्रेम तो कही कपटी चाल है
उड़ाता मख़ौल बचपन की वो बात है
वक़्त के साथ बदल गयी जज्बातों की बारात है
ना अब वो चाँद महफिले शान है
ना ही ग़ज़लों में वो रूमानी अंदाज़ है
बस कुछ पल का याराना
सब जज्बातों की बात है
बदल गयी अब वक़्त की रफ़्तार है
खुशफ़हमी के आलम में जीने को
मजबूर आज हालात है
सब जज्बातों की बात है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-08-2016) को "तिरंगे को सलामी" (चर्चा अंक-2435) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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आप सबको स्वतन्त्रता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी
Deleteशुक्रिया
सादर
मनोज