Saturday, August 13, 2016

जज्बातों की बात

सब जज्बातों की बात है

कही प्रेम तो कही कपटी चाल है 

उड़ाता मख़ौल बचपन की वो बात है 

वक़्त के साथ बदल गयी जज्बातों की बारात है 

ना अब वो चाँद महफिले शान है 

ना ही ग़ज़लों में वो रूमानी अंदाज़ है 

बस कुछ पल का याराना 

फ़िर अँधेरी रात है

सब जज्बातों की बात है

बदल गयी अब वक़्त की रफ़्तार है

खुशफ़हमी के आलम में जीने को

मजबूर आज हालात है

सब जज्बातों की बात है

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-08-2016) को "तिरंगे को सलामी" (चर्चा अंक-2435) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    आप सबको स्वतन्त्रता दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. शास्त्री जी
      शुक्रिया
      सादर
      मनोज

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