Friday, July 5, 2019

महत्वकांक्षा

बदलती फ़िज़ाओं ने मंज़िल का रुख मोड़ दिया

खुबसूरत पैगाम संदेशा मीठा सा सुना गया

एक नयी सुबह से करुँ एक नया आगाज़

कर लूँ दुनिया मुट्ठी में छू लूँ नीला आकाश

आसमाँ से आगे मंज़िल कर रही मेरा इंतजार 

कामयाबी के हर कदम लिखूँ एक नयी कहानी

उड़ चलू महत्वकांक्षा के उड़न खटोले पे हो सवार

मिल जाए मंज़िल को मन चाहा क्षतिज का आधार

आलिंगन करने धरा उतर आये अम्बर और आकाश

धूप छावं की चाल में फिसल ना जाऊ राह में

अटल मज़बूत इरादें लिए निकल जाऊ राह में

चूमने सफलता के कदम एक रोज

मंज़िल नतमस्तक होगी धूल भरे पाँव में

मनन कर इस बेला को इसी पल

आत्मसात कर जाऊ मंगल मंज़िल बेला को 

मंगल मंज़िल बेला को 

9 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07 -07-2019) को "जिन खोजा तिन पाईंयाँ " (चर्चा अंक- 3389) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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    1. आदरणीय अनीता जी

      बहुत बहुत शुक्रिया

      सादर
      मनोज क्याल

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  2. बहुत सुंदर हौसला लिए अप्रतिम प्रस्तुति।

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    1. आदरणीय

      आपका आशीर्वाद
      सादर
      मनोज क्याल

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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    1. आदरणीय ओंकार जी

      आपका तहे दिल से शुक्रिया
      सादर
      मनोज क्याल

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  4. Manoj yah kisi bhi kavya premi ke liye ek tohfe ki tarah hai..... Kisi old wine ki tarah hi, jitani bhaar tujhe padhta hu, utna hi teri likhani ka aur kayal hota chala jaata hu...

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    1. भाई

      सुन्दर शब्दों के शुक्रिया

      आभार

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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