Wednesday, April 1, 2020

अहंकार

देख मानव के नित नये जैविक हथियारों के आविष्कार

कायनात भी स्वतः आ पहुँची नष्ट होने के कगार

बिन चले एक भी तोप , गोली और तलवार

हर ओर लग गये पर्वतों से ऊपर लाशों के अम्बार

रास ना आया प्रकृति को अहंकारी मानव का

चेतना शून्य वर्चस्व का यह अंदाज़

मूक दर्शक बन रह गया बस ख़लीफ़ा

नेस्तनाबूद हो रही सम्पूर्ण सृष्टि आज

सन्नाटा मरघट का ऐसा पसरा चहुँ ओर

जल रही चिताओं की होली बुझा गयी जीवन लौ 

शिथिल पड़ गयी मानवता विनाश लीला वेग को

रो उठी कुदरत देख अपनी ही रचना तांडव आकार

प्रतिघात कर प्रहार कर सभ्यता के सीने को

अपने स्वार्थ को कलंकित दृष्टि विहीन मानव ने

जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को

जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को 

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (02-04-2020) को   "पूरी दुनिया में कोरोना"   (चर्चा अंक - 3659)    पर भी होगी। 
     -- 
    मित्रों!
    कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आदरणीय शास्त्री जी

      मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए शुक्रिया

      आभार
      मनोज

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  2. मार्मिक सृजन ,सादर नमस्कार आपको

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    1. आदरणीया कामिनी जी
      तहे दिल से आपका धन्यवाद
      आभार
      मनोज

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  3. सामयिक प्रस्तुति

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    1. आदरणीय ओंकार जी
      तहे दिल से धन्यवाद
      आभार
      मनोज

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