Sunday, July 19, 2020

तन्हा चाँद

चाँद इश्क़ से तन्हा रह गया l
दुआओं की बस मुराद बन रह गया ll 

मुकाम लाखों ऐसे आये इस अंजुमन की फेहरिस्त में l
इजहार में इकरार मगर अधूरा रह गया तन्हाइयों के आलम में ll 

दाग झलक रहा इश्क़ के दामन पैबंद जैसे l 
कोई तिल चिपक आलिंगन कर गया चाँद को जैसे ll 

चाँदनी के नूर से टपक रही आयतें रोज नयी जैसे l
किनारे बैठ दीदार हसरतें पैगाम दे रही कोई जैसे ll

मुकम्मल जहाँ मिला नहीं इश्क़ बदनाम जैसे l
चाँद भी बदलता रहा रूप जलाने इश्क़ को जैसे ll 

आलम कुछ असहज बन गया करते करते इश्क़ की पैरवी ऐसे l  
सितारों से महफूज चाँद भी तन्हा रहा गया अपने मुस्तकबिल जैसे ll

घरोंदे की दरों दीवार भी परायी नज़र आ रही दिल में l
रुखसत हो इश्क़ छोड़ गया चाँद को तन्हा जब से ll

रुखसत हो इश्क़ छोड़ गया चाँद को तन्हा जब से l
रुखसत हो इश्क़ छोड़ गया चाँद को तन्हा जब से ll

2 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय शास्त्री जी
      दिल से शुक्रिया l
      आभार
      मनोज

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