अश्कों का कोई मोल नहीं था इस शहर ll
पर कटे परिंदों सा था ये हमसफ़र l
झुकी नज़रें बयाँ कर रही तन्हा यह सफ़र ll
मेहरम नहीं इनायत नहीं सुबह हो या रात भर l
फासला गहरा इतना दो पहर सागर के दो तरफ़ ll
आरज़ू मिली भटकती राह एक शाम इस शहर l
लिपट गयी सहम गयी ख़ुद से सहमी सहमी डगर ll
पगडंडियाँ से पटी थी बाजार की नहर l
निर्जन खड़ी थी जिजीविषा की लहर ll
आहट एक समाई थी अंदर ही अंदर l
साये संग रूह की ना थी कोई खबर ll
रेखा हथेलियाँ बदलूँ एक रोज नए शहर l
फ़िलहाल ख़ामोश रहूँ कह रही पलकें संभल संभल ll
बेचैन रहती थी पलकें इस कदर l
अश्कों का कोई मोल नहीं था इस शहर ll
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 02-05-2021) को
"कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश।" (चर्चा अंक- 4054) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आदरणीया मीना दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने एवं हौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
Deleteरेखा हथेलियाँ बदलूँ एक रोज नए शहर l
फ़िलहाल ख़ामोश रहूँ कह रही पलकें संभल संभल ll
बहुत ही सुन्दर...
वाह!!!
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
सुन्दर गजल, प्रभावशाली प्रस्तुति। ।।। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय मनोज जी।
ReplyDeleteआदरणीय पुरषोतम जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
पगडंडियाँ से पटी थी बाजार की नहर l
ReplyDeleteनिर्जन खड़ी थी जिजीविषा की लहर ll
बेहतरीन ग़ज़ल ।।
आदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteआदरणीय नीतीश जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
आहट एक समाई थी अंदर ही अंदर l
ReplyDeleteसाये संग रूह की ना थी कोई खबर ll
बेहद मार्मिक सृजन,सादर
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
बेहद उम्दा नज़्म ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
ReplyDeleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
एक लाजवाब गज़ल,हर शेर उम्दा ।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
सुन्दर गज़ल.....
ReplyDeleteआदरणीय विकास जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
गहरे अर्थपूर्ण शेर हैं सभी ...
ReplyDeleteअच्छी गज़ल ...
आदरणीय दिगम्बर जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
प्रिय मनोज आपके लेखन से आपके चिंतन की गहराई का पता चलता है | बहुत गहरे उतर कर लिखते हैं आप | अछि ग़ज़लें पढ़ी आज आपकी | लिखते रहिये आपको मेरी शुभकामनाएं|
ReplyDeleteआदरणीया रेणु दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
सादर
बेचैन रहती थी पलकें इस कदर l
ReplyDeleteअश्कों का कोई मोल नहीं था इस शहर ll
पर कटे परिंदों सा था ये हमसफ़र l
झुकी नज़रें बयाँ कर रही तन्हा यह सफ़र ll
बहुत खूब |
शुक्रिया दीदी जी
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