Saturday, August 14, 2021

ताजमहल

रुसवा हो वो जो छोड़ गए थे बीच मझधार I
पिरोयें थे ताजमहल के जो सुनहरी खाब्ब II

कैसे फिर यह दिल सिर्फ किसी एक को चाहे I 
रंजिशें कर ली जब अरमानों ने खुद के साथ II

चाँद भी इस डगर हो गया खुद से बेनक़ाब I
टूट बिखरा गया तारें का रूमानी मेहताब II   

रंगे थे आसमां जिनकी ग़ज़लों से सुबह शाम I 
नाम कर गयी वो इन्हें किसी काफिर के नाम II

तन्हा छोड़ रूह उसकी चले जाने के बाद I
दिल हो गया ए तवायफ़ के घराने समान II 

महरूम हो गयी वादियाँ एक वीराने के साथ I 
मशगूल रह गयी सिर्फ यादें बदनामी के साथ II 

फिक्र अब ना थी इस दिल की दिल के पास I
दफ़न हो गया मकबरे के ताबूत में समाय II 

10 comments:

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    1. आदरणीय गगन भाई साब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन

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  2. वाह!बेहतरीन अनुज 👌
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन

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  3. बहुत बहुत सुन्दर गजल

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    1. आदरणीय आलोक भाई साब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन

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  4. क्या खूब कहा है । बहुत ही बढ़िया ।

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    1. आदरणीया अमृता दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन

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  5. तन्हा छोड़ रूह उसकी चले जाने के बाद I
    दिल हो गया ए तवायफ़ के घराने समान II ,,,,,,,,,,।बहुत सुंदर आप की रचनाएँ बहुत ही बेहतरीन होती है आदरणीय शुभकामनाएँ ।

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    1. आदरणीया मधुलिका दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन

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