Friday, November 12, 2021

ढलती छावं

खड़ी थी वो लिए उन सुहानी यादों को उस मोड़ पर l
एक ताज महल मैं भी गूँथ लूँ लम्हों के जिस मोड़ पर ll

नये रंग में फिर से लिखूँ हर्फ की यह नयी ग़ज़ल l
की महताब भी मेहरम हो आये इसकी हर नजर ll

सदियों से छुपा रखे उन राज़दार सूखे गुलदस्तों से भी l
हर अंदाज़ में महके अल्फ़ाज़ ताजे हसीन फूलों सी ll

कच्चे धागे से बँधी इस प्रीत की बंधन डोर को l
ताबीज़ बना पहन लूँ इन मन्नत धागों डोर को ll

मोहलत थोड़ी सी ख़रीद लूँ उस आसमाँ खास से l
अर्से बाद बेताब हो रहे अश्रु धारा नयनों साथ में ll

उकेर लूँ इस चहरे को पूरी तरह मेरे आँगन द्वार में l
खो ना जाय फिर कही साया यह ढलती छावं में ll

खो ना जाय फिर कही साया यह ढलती छावं में ll
खो ना जाय फिर कही साया यह ढलती छावं में ll

15 comments:

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    1. आदरणीय सुशील भाई साहब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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    1. आदरणीय रोहीतास भाई साहब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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  3. आदरणीय दिलबाग भाई साहब
    मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
    आभार

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  4. खूबसूरत वर्णन किय है सर

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    1. आदरणीया प्रीति दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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  5. बहुत उम्दा ग़ज़ल ,हर शेर लाजवाब।

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    1. आदरणीया कुसुम दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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  6. बहुत सुंदर रचना,जितनी भी तऱीफ की जाए कम ही लगेगी,।

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    1. आदरणीया मधुलिका दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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  7. वाह ...
    अच्छे शेर कहे हैं ...

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