Sunday, April 3, 2022

तसव्वुर

संग पानी के रेत दरियाँ की लिपटी क़दमों से ऐसे l
मृगतृष्णा सी हिना सज गयी रेगिस्तान में जैसे ll

आसमाँ भी उतर आया सुन इसके झांझर की झंकार l
मुद्दतों बाद कोई सौगात ले आयी रंगों नूर की बारात ll

कुरेदा था जिसे कभी हथेलियों पर आयतों की तरह l
खुशफहमियाँ उन मौजों की मिल रही खुदा की तरह ll

आतुर कश्ती भी डोली थी कभी छूने इसके साहिल को l
सिमट गयी थी खोई खोई संकुचित लहरें अपने पानी को ll

बेबाक सी कह गयी थी दीवारें उस अंजुमन मजार की l
रुखसत होते ही तेरे हिज्रे बेनकाब हो गयी हिजाब की ll  

तसव्वुर उस चाँद का ओझल हुआ नहीं दिल के बीच l
खाब्बों के दरमियाँ अकेला रह गया इसके सजदे बीच ll

12 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय भाई साहब
      मेरी कृति पसंद करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया

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  2. संग पानी के रेत दरियाँ की लिपटी क़दमों से ऐसे l
    मृगतृष्णा सी हिना सज गयी रेगिस्तान में जैसे ll
    अति सुन्दर ॥

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी

      मेरी कृति पसंद करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया

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  3. वाह!!
    तसव्वुर उस चाँद का ओझल हुआ नहीं दिल के बीच..
    क्या कहने..
    बधाई

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    1. आदरणीया दीदी जी

      मेरी कृति पसंद करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 6 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

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    1. आदरणीया दीदी जी

      मेरी कृति को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया

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  5. Replies
    1. आदरणीया विभा दीदी जी
      मेरी कृति पसंद करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया

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  6. वाह!!बहुत खूब!

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    1. आदरणीया शुभा दीदी जी
      मेरी कृति पसंद करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया

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