Wednesday, April 20, 2022

कल्पनाशील

उलझी उलझी थी मोहब्बत मेरी उसके दिल की गली गली l
संगेमरमर सी ताज महल बन गयी वो यादों की गली गली ll

खुशनुमा हो जाते थे तरन्नुम के वो कुछ खास से पल l
छत पर जब नजर आ आती थी उसकी एक झलक ll

कसीदें उसके तारूफ में भेजा करते जब आसमाँ साथ में l
मेघों की लड़ियों भी सज जाती उसकी कर्णफूलें शान में ll

कलाई से बंधे धागों सी कोई कशिश थी इन चाहतों के बीच l
हथेलियों पर लिखी कोई इबादत थी जैसे इन लकीरों के बीच ll

करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l
चाँद जब जब उतर आता था मेरे झरोखे दालान भी ll

बड़ा मीठा सा रूमानी था कल्पनाशील का वो आशिकी मिजाज़ भी l
निभाने दस्तूर ख्यालों से निकल वो चले आते थे ख़्वाबों पास भी ll

अवदान उनकी उस मुस्कान का ही था मेरी उड़ानों के बीच l
जिक्र सिर्फ जिनकी आँखों का ही था मेरी किताबों के बीच ll

9 comments:

  1. करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l///
    कल्पना की ऊँची उड़ान बहुत प्रभावी है प्रिय मनोज जी। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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  2. आदरणीय दिलबाग भाई साहब
    मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया l

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  3. आदरणीया रेणु दीदी जी
    सुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      सुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l

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  5. कलाई से बंधे धागों सी कोई कशिश थी इन चाहतों के बीच l
    हथेलियों पर लिखी कोई इबादत थी जैसे इन लकीरों के बीच.... वाह!बहुत सुंदर अनुज 👌

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      सुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l

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  6. करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l///
    वाह!!!!
    क्या बात..

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      सुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l

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