Wednesday, June 1, 2022

हवा

सुन उसके पैरों की आहट हवाओं से मैं बात करते चला l
छाँव के साये महफ़ूज़ उसे रखने बदरा तुम संग लेते आना ll

तपिश की चुभन छाले ना पड़े उनके कदमों में l
उनके पैरों निशाँ पर तुम बारिश बन छा जाना ll

सरगम उसके पायलों की मिल रेत कणों से l
बासंती मृदंग रंग घोल रही उसके कर्णफूलों से ll

आना तुम भी मिलने मुझसा पागल दीवाना बनके l
आँचल आँधियों का पहना रूह मेरी बन ठहर जाना ll

सगुन की रंगों भरी इन मुलाकात बरसातों में l
मेहरम मेरी बन धड़कनें उनकी बन रच जाना ll

ए हवा मेहरबां बन तू मेरी इस सफर के हमसफर l
मिलन इस पहर आलिंगन खुशबु बनके छा जाना ll

8 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4449 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. आदरणीय दिलबागसिंह भाई साब
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार

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  2. ख़ूबसूरत रूमानी कविता !

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    1. आदरणीय गोपेश भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  3. बेहद खूबसूरत रचना
    वाह

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    1. आदरणीय भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  4. बहुत सुन्दर ! भावपूर्ण रचना ।

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    1. आदरणीय आतिश भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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