Thursday, February 2, 2023

छेड़खानियां

सप्तरंगी तरंगें थिरकती जिन बाँसुरी शहनाई की धुन l 

निजामते पुकार लायी फिर उन छेड़खानियां की रूह ll


आँधियों से जिसकी जर्रा जर्रा महका करता था कभी l

संवरने लगी वो आज फिर सुन दिल दस्तको॔ की धुन ll


सिलसिला दो हसीन ख़यालात खिलते गुलाब जज्बातों का l

एक मौन स्वीकृति खुशमिजाज आलिंगन करती हवाओं का ll


अर्ज़ बड़ा ही मासूम था इसकी उन अतरंगी अदाओं में l

तर्ज़ में जिसकी सितारें थे हर एक दिल्लगी इशारे में ll


मिलन गुलदस्ता ख्वाब बना था जिस खत का कभी l

अधूरा वो खत आज भी पड़ा था उसी किताब बीच ll


तराश नियति ने सजाये दो अलग अलग गुलदानों में l

मुरझा गये गुलाब दोनों जुदा हो अपनी ही साँसों से ll


आज फिर अचानक खिलखिलायी जो यादों की सुनहरी धूप l

छू गयी फिर से उन नादान छेड़खानीयों की मीठी सी धुन ll


4 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  2. मधुर शब्दों की महकती सी धुन

    ReplyDelete
  3. अर्ज़ बड़ा ही मासूम था इसकी उन अतरंगी अदाओं में l

    तर्ज़ में जिसकी सितारें थे हर एक दिल्लगी इशारे में ll

    हर दिल्लगी को संभाले रखा है दिल में।

    उसकी हर अतरंगी अदाएं आज भी धड़कती हैं मेरे सीने में।।

    ReplyDelete
  4. मिलन गुलदस्ता ख्वाब बना था जिस खत का कभी l

    अधूरा वो खत आज भी पड़ा था उसी किताब बीच
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण ...

    ReplyDelete