एक विस्मित सा संवाद था उसकी आयतों कारीगरी में l
केशों गुलाब लिखी जैसे कोई ग़ज़ल थी उसकी अदाकारी में ll
रूह महकी थी जिन अधूरे खत भींगी आँचल साझेदारी में l
नफासत नजाकत लाली शामिल जिसकी रुखसार तरफदारी में ll
काफिर महकी आँखें पेंचों उलझी जिसकी रहदारी में l
उत्कर्ष स्पर्श था उसकी चंदन बिंदी पहेली रंगदारी में ll
दार्शनिक सी उसकी गलियों की वो टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डियाँ l
जुस्तजू गुलदस्ता कहानियां पिरोती कर्णफूल आसमानों की ll
इस खामोशी स्पन्दन से गुदगुदा करवटें बदलती आरजूएँ l
तस्वीर नयी सहर रंग गयी बैरंग खत पन्नों रुकी कूँची राहों में ll
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार भाई साब
Deleteह्रदय तल से आपका आभार
सुंदर
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteह्रदय तल से आपका आभार
आदरणीय भाई साब
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार