उमड़ रही काली घनघोर घटाओं मझधार से l
कानाफूसी कर्णफूलों सजी बैजंती झंकार से ll
गुनाहों सी एक कंपकंपी हवाओं के रुखसार में l
बेअसर डोरी थामे रखने पतंग कमान अपनी धार में ll
मोजों कहानी तामील तमन्नाएं रह गुजरी l
सिंदूरी रंगों रंगी अर्पण लहरों अंतर्ध्यान से ll
दर्पण अर्पण बिंदी खोई अर्ध चाँद दाग में l
अंजलि तर्पण भिगोॅ गयी कायनात साथ में ll
ख्याल सवार मृगनयनी रूमानी खुमार में l
सहर दस्तक तामील हो गयी साँझ गुनाह में ll
सदैव की भांति बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीय मीना दीदी जी
Deleteअल्फाज नहीं मेरे पास धन्यवाद के लिए , आप जिस तरह एक भाई की हौशला अफजाई करती हो , आपको दिल से नमन हैं l
आपका भाई