कीर्ति रचना जो भी कहो
वया करती है सभी मन के विचार
उमड़ता है जब भावनाओं का सैलाब
नयी रचना लेती है तब आकर
पिरों सुन्दर शब्दों में
कलमबंद हो जाते है जब विचार
हो जाते है तब सपने साकार
कीर्ति रचना जो भी कहो
वया करती है सभी मन के विचार
उमड़ता है जब भावनाओं का सैलाब
नयी रचना लेती है तब आकर
पिरों सुन्दर शब्दों में
कलमबंद हो जाते है जब विचार
हो जाते है तब सपने साकार
ज्ञानी नहीं हु
फिर भी लिखता हु गीत नया
जाने कब बह पड़े
मीठे संगीत की रस भरी धारा
सरगम लगेगी जब बरसने
नाम मेरा भी तब लगेगा छलकने
यादों की परछायिओं में
कुछ बातें अधूरी रह गयी
ठहठहांको के बीच
दिल की बात दबी रह गयी
ज़माना समझ ना पाया जज्बातों को
उपहास बना दिया मेरे अरमानों को
कितना हसीन तेरा ख्याल है
जैसे खिला गुलाब है
उससे भी हसीन तेरे प्यार का अहसास है
जैसे चांदनी में लिपटा चाँद का शब्बाब है
दिल से हसीन नजरान ओर क्या पेश करू
ओ जानेजाना तेरी खिदमत में
प्यार भरा छोटा सा ए दिल पेश करू
अर्ज है इतनी सी
इसे तुम कबूल करो
मेरे प्यार को अपनी रूह में आत्मसात करो