Sunday, February 13, 2011

रचना

कीर्ति रचना जो भी कहो

वया करती है सभी मन के विचार

उमड़ता है जब भावनाओं का सैलाब

नयी रचना लेती है तब आकर

पिरों सुन्दर शब्दों में

कलमबंद हो जाते है जब विचार

हो जाते है तब सपने साकार

नाम

ज्ञानी नहीं हु

फिर भी लिखता हु गीत नया

जाने कब बह पड़े

मीठे संगीत की रस भरी धारा

सरगम लगेगी जब बरसने

नाम मेरा भी तब लगेगा छलकने

उपहास

यादों की परछायिओं में

कुछ बातें अधूरी रह गयी

ठहठहांको के बीच

दिल की बात दबी रह गयी

ज़माना समझ ना पाया जज्बातों को

उपहास बना दिया मेरे अरमानों को

शब्बाब

कितना हसीन तेरा ख्याल है

जैसे खिला गुलाब है

उससे भी हसीन तेरे प्यार का अहसास है

जैसे चांदनी में लिपटा चाँद का शब्बाब है

खिदमत

दिल से हसीन नजरान ओर क्या पेश करू

ओ जानेजाना तेरी खिदमत में

प्यार भरा छोटा सा ए दिल पेश करू

अर्ज है इतनी सी

इसे तुम कबूल करो

मेरे प्यार को अपनी रूह में आत्मसात करो