Saturday, February 6, 2010

किवदंती

तराशा ताजमहल जिन्होंने

हुनर था हाथों में उनके

प्रेम को पथरों पे उकेरा ऐसे

इबादत हो खुदा की जैसे

किवदंती जिन्दा बन गई

प्रेम कहानी अमर कर गई

No comments:

Post a Comment