RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Tuesday, December 7, 2010
ठिकाना
ना ठोर है ना ठिकाना है
जहा मिल जाये आसरा
वो बसेरा सपना है
ह़र रोज एक नया सबेरा है
छोटे से इस जीवन में
ना कोई अपना है
ना कोई पराया है
जिन्दगी बस ऐसे ही
चलते जाना है
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment