Wednesday, September 21, 2016

कदम

क़दमों का क्या गुनाह

बिन पिये ए लड़खड़ाते हैं

दो बूँद शराब की

फिर से क़दमों में घुँघरू बंध जाते हैं

नचाती हैं जब दुनिया

बिन पिये ही ए बहक जाते हैं

ओर संभलने को फिर से

मयखाने चले आते हैं

आहिस्ता ही सही

भूल रंजो गम

सुरूर में इसकी

कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं

कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं

7 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2473 में दी जाएगी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. दिलबाग भाई

      तहे दिल से शुक्रिया
      सादर
      मनोज

      Delete
  2. आदरणीय शास्त्री जी
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
    सादर
    मनोज

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. पारुल जी
      हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
      आभार
      मनोज

      Delete
  4. Replies
    1. रश्मि जी
      तहे दिल से शुक्रिया
      आभार
      मनोज

      Delete