क़दमों का क्या गुनाह
बिन पिये ए लड़खड़ाते हैं
दो बूँद शराब की
फिर से क़दमों में घुँघरू बंध जाते हैं
नचाती हैं जब दुनिया
बिन पिये ही ए बहक जाते हैं
ओर संभलने को फिर से
मयखाने चले आते हैं
आहिस्ता ही सही
भूल रंजो गम
सुरूर में इसकी
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
बिन पिये ए लड़खड़ाते हैं
दो बूँद शराब की
फिर से क़दमों में घुँघरू बंध जाते हैं
नचाती हैं जब दुनिया
बिन पिये ही ए बहक जाते हैं
ओर संभलने को फिर से
मयखाने चले आते हैं
आहिस्ता ही सही
भूल रंजो गम
सुरूर में इसकी
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2473 में दी जाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग भाई
Deleteतहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-09-2016) को "नेता श्रद्धांजलि तो ट्विटर पर ही दे जाते हैं" (चर्चा अंक-2474) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद्
सादर
मनोज
waah!
ReplyDeleteपारुल जी
Deleteहौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteरश्मि जी
Deleteतहे दिल से शुक्रिया
आभार
मनोज