मौन क्यों हैं तू घटा आज
बरसी नहीं क्यों फिर बदरी आज
प्रचंड ताप सूर्य ने हैं दिखलाया
जल रही मरुधर की भी छाया
मच रहा हाहाकार चहुँ ओर
रुंदन कर रही धरती भी आज
बिन जल मृत्यु शैया पर लेटी हु आज
मृगतृष्णा के भँवर में
लुप्त ना हो जाए सागर कही आज
अस्तित्व ही कुदरत का
लग गया मानो दांव पे आज
इसलिए गरज बरस घटा फिर से आज
ताकि मिल जाए जीवन अस्तित्व को
अमृत बूँदों की मिठास
अमृत बूँदों की मिठास
बरसी नहीं क्यों फिर बदरी आज
प्रचंड ताप सूर्य ने हैं दिखलाया
जल रही मरुधर की भी छाया
मच रहा हाहाकार चहुँ ओर
रुंदन कर रही धरती भी आज
बिन जल मृत्यु शैया पर लेटी हु आज
मृगतृष्णा के भँवर में
लुप्त ना हो जाए सागर कही आज
अस्तित्व ही कुदरत का
लग गया मानो दांव पे आज
इसलिए गरज बरस घटा फिर से आज
ताकि मिल जाए जीवन अस्तित्व को
अमृत बूँदों की मिठास
अमृत बूँदों की मिठास
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