Tuesday, September 6, 2016

अमृत बूँदों की मिठास

मौन क्यों हैं तू घटा आज

बरसी नहीं क्यों फिर बदरी आज

प्रचंड ताप सूर्य ने हैं दिखलाया

जल रही मरुधर की भी छाया

मच रहा हाहाकार चहुँ ओर

रुंदन कर रही धरती भी आज

बिन जल मृत्यु शैया पर लेटी हु आज

मृगतृष्णा के भँवर में

लुप्त ना हो जाए सागर कही आज

अस्तित्व ही कुदरत का

लग गया मानो दांव पे आज

इसलिए गरज बरस घटा फिर से आज

ताकि मिल जाए जीवन अस्तित्व को

अमृत बूँदों की मिठास  

अमृत बूँदों की मिठास

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