Tuesday, September 13, 2016

नींद

तारों भरी रात में

नींद आज फिर से दगा दे गयी

चाँद के इन्तजार में

हमें तन्हा अकेला छोड़ गयी

राह तकते तकते

मानों सदियाँ गुजर गयी

नयनों से जैसे निंदिया महरूम हो गयी

छिप गया ओझल होकर ना जाने वो कहा

निंदिया भी उसकी तलाश में

आँखों से भटक गयी

खुली पलकों में स्याह रात गुजर गयी

पर वो चाँद ना निकला

जिसके इन्तजार में रात ढल गयी

नींद आज फिर से दगा दे गयी 

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