Saturday, July 8, 2017

रुख

कह दो हवाओं से

रुख बदल ले जरा

हिज़ाब उनका सरका ले जाए जरा

हुस्न जो कैद हैं इसके पीछे

आज़ाद हो जाए नक़ाब से जरा

छिपा महफ़ूज रखा जिसे

दीदार से उसके हो जाए जरा

कह दो हवाओं से

रुख बदल ले जरा




1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-07-2017) को "एक देश एक टैक्स" (चर्चा अंक-2662) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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