जीने के तरीक़े तलाश रहा हूँ
शायद अपने आप को संभाल रहा हूँ
ठोकर गहरी इतनी लगी
फिर उठने की कोशिश कर रहा हूँ
ना ही कोई खुदा हैं
ना ही कोई अपना हैं
जन्म मृत्यु के बीच का फासला ही
यथार्थ में कर्मों का ही रूहानी खेल हैं
आत्मसात हुआ इस ज्ञान का
जिंदगी रूबरू हुई जब अपने आप से
शायद अपने आप को संभाल रहा हूँ
ठोकर गहरी इतनी लगी
फिर उठने की कोशिश कर रहा हूँ
ना ही कोई खुदा हैं
ना ही कोई अपना हैं
जन्म मृत्यु के बीच का फासला ही
यथार्थ में कर्मों का ही रूहानी खेल हैं
आत्मसात हुआ इस ज्ञान का
जिंदगी रूबरू हुई जब अपने आप से
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-07-2017) को "तरीक़े तलाश रहा हूँ" (चर्चा अंक 2681) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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