ख़ामोशियों को मैंने नए अंदाज़ दे दिए
लफ्ज़ जो जुबाँ पे आ ना पाए
उन्हें नए मुक़ाम दे दिए
दिलचस्प हो गयी इशारों की बात
भाषा की जगह आ गए दिलों के मुक़ाम
मौन लफ्जों के ज़िक्र में
बस गयी दिलों के रूहों की किताब
कुछ लफ्ज़ फ़लसफ़ों से
कुछ बंद लिफाफों से निकल
जोड़ आये दिलों से दिलों के तार
बेफिक्र इशारों की मन मर्जियाँ
हटा रुख से नक़ाब
खामोश लबों से क़त्ल कर आयी सरेआम
क़त्ल कर आयी सरेआम
लफ्ज़ जो जुबाँ पे आ ना पाए
उन्हें नए मुक़ाम दे दिए
दिलचस्प हो गयी इशारों की बात
भाषा की जगह आ गए दिलों के मुक़ाम
मौन लफ्जों के ज़िक्र में
बस गयी दिलों के रूहों की किताब
कुछ लफ्ज़ फ़लसफ़ों से
कुछ बंद लिफाफों से निकल
जोड़ आये दिलों से दिलों के तार
बेफिक्र इशारों की मन मर्जियाँ
हटा रुख से नक़ाब
खामोश लबों से क़त्ल कर आयी सरेआम
क़त्ल कर आयी सरेआम
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-04-2019) को "बेचारा मत बनाओ" (चर्चा अंक-3308) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह। बहुत ही सुन्दर कविता।
ReplyDelete