तन्हा हूँ पर अकेला नहीं हूँ
तेरी यादों में आज भी जिन्दा हूँ
राहे माना हमारी जुदा थी
दो कदम पर जो साथ चले
कस्ती वो मझधारों की मारी थी
लकीरें क़िस्मत भी दगा कर गयी
थमा तेरे आँचल की डोर
रूह मेरी मुझसे चुरा ले गयी
लहू अस्कों का हिना बन
जैसे दुल्हन हाथों सज आयी
और डोली संग संग अर्थी रिश्तों की सज आयी
फ़िर भी यादें तेरी इस दिल में दफ़न ना कर पायी
अनजाने में ही सही ओर जिन्दा रहने को
तन्हाई के लिए एक मौसिक़ी नजरानें में दे आयी
एक मौसिक़ी नजरानें में दे आयी
तेरी यादों में आज भी जिन्दा हूँ
राहे माना हमारी जुदा थी
दो कदम पर जो साथ चले
कस्ती वो मझधारों की मारी थी
लकीरें क़िस्मत भी दगा कर गयी
थमा तेरे आँचल की डोर
रूह मेरी मुझसे चुरा ले गयी
लहू अस्कों का हिना बन
जैसे दुल्हन हाथों सज आयी
और डोली संग संग अर्थी रिश्तों की सज आयी
फ़िर भी यादें तेरी इस दिल में दफ़न ना कर पायी
अनजाने में ही सही ओर जिन्दा रहने को
तन्हाई के लिए एक मौसिक़ी नजरानें में दे आयी
एक मौसिक़ी नजरानें में दे आयी
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'