Wednesday, July 21, 2021

सकून

अजीब सा सकून था झोपड़े के उस खंडहर में l
बिछौने आँचल पसरा देती माँ रोता मैं जब डर के ll

सिरह जाता कौंधने बिजली कभी आधी रातों में l  
सीने से दुबका नींदों में सुला देते थे तब बाबा भी ll

एक अदद टूटी लालटेन ही रोशनी का सहारा थी l 
अँधियारे से लड़ती इसकी कमजोर लौ बेसहारा थी ll 

टपकती छत अँगीठी अक्सर बुझा जाती थी l
माँ फिर भी साँसे फूँक इसको सुलगा लाती थी ll 

मेरे लिए खाट जो बुनी थी बाबा ने अपनी धोती से l
थपकी की थाप लौरी की गूँज छाप दोनों थी उसमें ll

माँ की उस रसोई से भी दुलार ऐसा बरस आता था l 
सूखी रोटी नमक में भी मक्खन स्वाद का आता था ll   

मोहताज़ थी वो झोपड़ी खंडहर एक दरवाज़े के लिए l
फिर भी कोई कमी ना थी माँ बाबा के उस क्षत्रशाल में ll

महसूस हुई ना कभी कोई कमी इसकी धूप छाँव में l 
अजीब सा सकून था उस झोपड़े की दरों दीवार में ll 

मिल जाये वो ही सकून एक बार फिर से l 
रो दिया लिपट यादों की उस तस्वीर से ll 

16 comments:

  1. बहुत सुन्दर ह्रदय स्पर्शी सृजन - - शुभकामनाओं सह।

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  2. आदरणीय शांतनू भाई जी
    मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
    सादर

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    1. आदरणीय प्रसन्नवदन भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  4. Replies
    1. आदरणीय शिवम् भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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    1. आदरणीय सुशील भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  6. अजीब सा सकून था झोपड़े के उस खंडहर में l
    बिछौने आँचल पसरा देती माँ रोता मैं जब डर के ll
    बहुत बढिया प्रिय मनोज जी | बचपन की सुहानी यादों को बहुत खूबसूरती से शब्दांकित किया है आपने |पूरी रचना विपन्नता पर प्रेम की जीत का आभास देती है | हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको | आपके लेखन का माधुर्य बसबस बांध लेता है |

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    1. आदरणीया रेणु दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  7. मर्मस्पर्शी सृजन ,सच वो निस्वार्थ प्रेम अमूल्य है ।
    सुंदर रचना।

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    1. आदरणीया कुसुम दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  8. माँ बाबा की यादें ऐसे ही विह्वलित कर जाती हैं ।मर्मस्पर्शी रचना ।

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    1. आदरणीया संगीता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  9. बहुत मार्मिक ह्रदय स्पर्शी रचना

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  10. बहुत ही गहरे भाव!

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