Tuesday, July 27, 2021

बूँदे

बारिश की उन बूँदों की भी अपनी कुछ ख्वाइशें थी l  
ओस बूँदों सी स्पर्श करुँ उसके गालोँ के तिल पास से ll  

मचली थी घटायें भी एक रोज मदहोशी शराब सी l
छू जाऊ बरस संगेमरमर की उस हसीन क़ायनात को ll 

पर चुपके से दबे पावँ बयार एक दौड़ी चली आयी l
संग अपने उड़ा बादलों को आसमाँ शून्य कर आयी ll 

आवारा हो गयी हसरतें बारिश आते आते इस मोड़ पर l  
बिखरा रंग गयी आसमां काले काले काजल की कोण से ll 

धुन लगी थी बूँदों को भी इसी उम्र बरस जाने की l
भींगी भींगी रातों में बाँहों के तन से लिपट जाने की ll    

आतुर थे छिछोरे बादल भीगने उस बरसात में l
घुँघरू बन सज जाने उन सुने सुने पावँ में ll

17 comments:

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    1. आदरणीय सुशील भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  2. बढ़िया लिखा है मनोज साहब। आपको बहुत बहुत बधाई।

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    1. आदरणीय वीरेंद्र भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  3. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।

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    1. आदरणीय नीतीश भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  4. बूंदों का बहुत ही सुन्दर मानवीकरण

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    1. आदरणीया कविता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  5. भावों का सम्प्रेषण अच्छा है ।

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    1. आदरणीया संगीता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  6. प्यारी सी मासूम सी ख्वाइशें, बूँदों की

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    1. आदरणीय गगन जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  7. मासूम ख्वाहिशों की चाहत कोबाखूबी लिखा है ...
    हर शेर लाजवाब और कमाल का है ...

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    1. आदरणीय दिगम्बर भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  8. बहुत खूब , बहुत सुन्दर

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    1. आदरणीय आलोक भाई साब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन

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  9. धुन लगी थी बूँदों को भी इसी उम्र बरस जाने की l
    भींगी भींगी रातों में बाँहों के तन से लिपट जाने की ll
    वाह!!!
    बहि ही सुन्दर सृजन।

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