Friday, September 24, 2021

एकाकी

हल्के हल्के पदचापों की आहटें l
थिरका रही बावरे मन की आयतें ll 

दस्तक दे रही उस परिंदे घरोंदों को l
आ ढहा जा इस एकाकी दीवारों को ll

कटे पर बेताब हूँ परवाज़ भर जाने को l
आतुर हूँ छूने अम्बर के उन बादलों को ll

सूख ना जाए पानी कहीं इन बरसातों के l
लिपट अंग भिगों दे आँचल अरमानों के ll

हिज़्र में जिसकी कितनी सदियाँ गुज़र गयी l
मुलाक़ात उस खुदा से एक मुकम्मल हो जाये ll

संग तारुफ़ उनके मिज़ाज़ की शरीक ऐसी रहे l
इत्तेफाकन ही मिल जाये वो इस अंजुमन में ll

आवाज़ दे रही एकाकी पिंजरें की दरों दीवारें l 
बसेरा बन बस जाये उनकी यादों के साये ll


11 comments:

  1. आदरणीया कामिनी दीदी जी
    मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
    आभार

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।

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    1. आदरणीय दीपक भाई साहब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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  3. बहुत सुंदर आशावादी रचना ।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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  4. बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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  5. शानदार लेखन, सुंदर सृजन।

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    1. आदरणीय संदीप भाई साहब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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  6. वाह! बहुत खूब।
    उम्दा ग़ज़ल।

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    1. आदरणीया कुसुम दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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