Wednesday, October 13, 2021

टेलीफोन

टेलीफोन नंबर उनका नहीं मेरे मोबाइल में l
डायल करता हूँ जब कहीं ओर किसी ओर को ll 

ना जाने कैसे बार बार रोंग नंबर डायल हो l
फ़ोन फिर उस कायनात को ही लग जाता हैं ll    

तस्वीर उसकी इस जेहन से हटती ही नहीं l
यादें भी उसकी इस चिलमन से जाती नहीं ll 

कुदरत ने भी जाने कैसा स्वांग रचा रखा हैं l
काफ़िर बना मुझको ही बदनाम कर रखा हैं ll

सुन उसकी आवाज़ बैचैन हो मैं बुत सा बन जाता हूँ l 
असहज हो अपने खामोश लबों से दूर चला जाता हूँ ll 

फ़ोन कट जाने के बाद भी घंटों पागलों की तरह l
उसे कानों से लगा आवाज़ उसकी सुना करता हूँ ll 

आखिर समीकरण यह इतना उलझा उलझा सा क्यों हैं l
मेरी टेलीफोन डायरी में उनका नंबर छिपा किधर को हैं ll 

सदियों जिससे स्वप्न में भी हुई नहीं कोई मुलाक़ात l 
रोंग नंबर डायल हो क्यों फ़ोन उसका ही लग जाता हैं ll

10 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१४-१०-२०२१) को
    'समर्पण का गणित'(चर्चा अंक-४२१७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
      आभार

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  2. बहुत ही बेहतरीन

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    1. आदरणीया मनीषा दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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  3. एहसासों में डूबा उम्दा सृजन।
    सुंदर।

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    1. आदरणीया कुसुम दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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    1. आदरणीया अनुराधा दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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    1. आदरणीय संजय भाई साहब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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