Tuesday, December 2, 2025

एक आवाज

 खो गयी एक आवाज शून्य अंधकार सी कही l

सूखे पत्ते टूटने कगार हरे पेड़ों डाली से कही ll


उलझी पगडण्डियों सा अकेला खड़ा मौन कही l

अजनबी थे लफ्ज़ उस अल्फाज़ मुरीद से कही ll


तराशी चिंतन टकटकी निगाहें मूर्त अधूरी थी कही I

रूह चेतना थी नहीं शतरंज बिछी बाजी सी कही ll


सूखी गर्त रूखी स्याही टूटे कलम नोंक से हर कही l

पुरानी सलवटें कागज लिख ना पायी अरमान कही ll


परछाई साये सी मौन साथ चलती रही कदमों कही l

ढलान ठोकर गहरी समुद्रों उफनती लहरों सी कही ll


डूबी अधूरी बातें चिंतन बादलों पार सूर्यास्त सी कही I

मझधार गुमनामी छोड़ गयी बिखरे थे जज्बात कही ll

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