खो गयी एक आवाज शून्य अंधकार सी कही l
सूखे पत्ते टूटने कगार हरे पेड़ों डाली से कही ll
उलझी पगडण्डियों सा अकेला खड़ा मौन कही l
अजनबी थे लफ्ज़ उस अल्फाज़ मुरीद से कही ll
तराशी चिंतन टकटकी निगाहें मूर्त अधूरी थी कही I
रूह चेतना थी नहीं शतरंज बिछी बाजी सी कही ll
सूखी गर्त रूखी स्याही टूटे कलम नोंक से हर कही l
पुरानी सलवटें कागज लिख ना पायी अरमान कही ll
परछाई साये सी मौन साथ चलती रही कदमों कही l
ढलान ठोकर गहरी समुद्रों उफनती लहरों सी कही ll
डूबी अधूरी बातें चिंतन बादलों पार सूर्यास्त सी कही I
मझधार गुमनामी छोड़ गयी बिखरे थे जज्बात कही ll
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