Monday, October 12, 2009

उड़ चलू

मन ये कहे उड़ चलू उड़ चलू

गगन गगन फिरता चलू

चहक चहक नीले अम्बर को छूता चलू

आजाद परिंदे सा डाली डाली छूता चलू

उड़ चलू उड़ चलू

खुशियों के पर लगा उड़ता चलू

कभी पर्वतो को कभी नदियों को छूता चलू

सुन के दिल की पुकार

हो के अरमानो के उड़न खटोले में सवार

उड़ चलू उड़ चलू

सुन के मन की बात दिल कहे ये बार बार

उड़ चलू उड़ चलू , उड़ चलू उड़ चलू

Saturday, October 10, 2009

गागर में सागर

गागर में सागर समां गयो रे

टुमक टुमक चाल पे दिल आ गयो रे

बन के मनमीत दिल में समां गयो रे

बदरी में चाँद छिपा गयो रे

घूँघट में मुख्डो नजर आ गयो रे

देख के आँखों में नूर आ गयो रे

दिल में दिल समां गयो रे

नस नस में प्यार भरा गयो रे

गागर में सागर समां गयो रे

अंगारे

जलते अंगारों पे लेट गयी

पिया तेरी खातिर ज़माने के सितम सह गयी

फिर तेरी जिंदगानी में लोट ना पायी

तुने यारी अच्छी निभाई

एक बार भी हमको आवाज़ ना दी

तेरी रुसवाई पे आंसू बहाते रहे

पर बेवफा तुने पलट के भी ना देखा

ज़माने की ठोकर खाने हमें छोड़ दिया

तड़पने के लिए अकेला छोड़ दिया

Wednesday, October 7, 2009

धूम धड़का

धूम धड़का होने दो

खेल अजब गजब चलने दो

मारो ताली पीटो ढोल

प्यार की बारिस होने दो

खिले फूल छुटे फुल्झडिया

मुस्कान रोनक भरी आने दो

बज रही शहनाई

दुल्हन को घर आने दो

चक्रभ्यु

जिन्दगी के चक्रभ्यु में ऐसे फंसे

ख़ुद से ख़ुद को रूबरू ना करा पाए

वक्त पंख लगा उड़ता चला गया

यादो को समेट भी ना पाए

जिस जिन्दगी की तलाश में भटके

उसे अपने में तलाश भी ना पाए

जिन्दगी के असली दर्पण को समझ ना पाए

अपने ही अक्स को पहचान ना पाए

इस चक्रभ्यु को समझ ना पाए

जी के भी जी ना पाए