Monday, July 27, 2009

सुरा

हमने साकी छोड़ दी

घरवाली ने पैमाना तोड़ दिया

यारों जिन्दगी अब कैसे गुजरेगी

जब ना साकी होगी ना पैमाना होगा

मधुशाला के बंद दरवाजे खुल रहे है

हमें अपनी आगोश में बुला रहे है

पर घर की खातिर मयखाने से तौबा करली

उस गली से गुजरना छोड़ दिया

जिधर मधुशाला के दरवाजे खुले

यारों आप मानो या ना मानो

हमने जाम छलकाना छोड़ दिया

फिर भी जुदाई के गम में

एक जाम होटों के नाम कर दिया

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