Sunday, December 21, 2025

पंजरी

सर्द हवाएँ ख़यालों होले से झूमकौ फुसफुसा गयी एक मिठी सी राग l

नाजुक हवाएँ पूछ रही पता उस अक्स तलब जिसकी थी कभी पास ll

 

कानाफूसी रूमानियत थामी थी सोंधी सोंधी पंजरी सी मुस्कान l

परिचय पूछ रहा अल्हड काजल कहा छुपी थी आँचल मनुहार ll

 

सौम्य काव्यअग्नि रूप सृष्टि माथे ललाट प्रतिबिंब चंदन आकार l

गुँथे घूंघट पीछे सहज संक्षेप लिख गयी एक सांची चंद्र आधार ll

 

उलझा बिखरी केश लट्टे वेणी सी सज गयी सुरमई साँझ कर्णताल l

सलाह चंचल गुदगुदी पायल सुना रही कोई सुन्दर कहानी संसार ll

 

कानाफूसी बीचों बीच थम थम बरसी जोगन सी मेघ सुर करताल l

ओस बूँदों ढ़की पलकें शागिर्द सी नाच उठी नींद सिरहानों साथ ll

 

 

Monday, December 15, 2025

अकेला क्यों

कुछ फटे बदरंगे अध लिखे पन्ने किताबों के संभाल रखने को दिल करता हैं l

इसकी कोई धुंधली तस्वीर जाने क्यों आज भी अक्सर अकेले में बातें करती हैं ll


हसरतें इसकी काले गुलाबों सी हवाओ को जब अपना दर्द बयां करती हैँ l

बिसरी मंजिलें सगर चंदन खुशबु यादें लपेटे पिंजर से आजाद हो आती हैं ll


धब्बे पानी के अंगुलियों जब सहलाती हैं चुभन अक्षरों को सिरहा जाती हैं l

लेखनी रिसता अश्रु सागर इसके पनघट छाया कतरा कतरा लहू बन आती हैं ll


शून्य इसके घाटों का पदचापों की पहचान रोशनी प्रतिबिंब बन दर्द दे जाती हैं l

मैं अकेला क्यों इस उलझन को इबादत की पहेली आदत और उलझा जाती हैं ll


हवाएँ साँसों की बातें इनसे जब करती हैं रूह थम सहम आती हैं l

परछाईं तलाश सुकून अहसासों की ग़म कुछ देर को भूला जाती हैं ll

Wednesday, December 10, 2025

ll अंतिम अरदास ll

स्पर्श सफर रूह ठहरा था जिस जिस्म अंगीकार को l

भस्मीभूत हो गया पंचतत्व कह अलविदा संसार को ll


वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव को l

ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम को ll


मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात को l

संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात को ll


अवध दीपावली तोरण सजी थी जिस शामें बहार को l

छोड़ किलकारी आँचल बिसरा गयी बचपन साँझ को ll


अतिरिक्त साँसे पास थी नहीं अंतिम सफर अरदास को l

वरदान अभिषप्त आँसू शान्त खो गये रूठे श्मशान को ll

Sunday, December 7, 2025

परिदृश्य

हैरत हुई ना किश्तों उधार मिली यादों दरारों में l

इल्तिजा ठहरी नहीं चहरे शबनमी बूँदों दरारों में ll


खोई सलवटें सूने आसमाँ तुरपाई गलियारों में l

छुपा गयी गुस्ताखियां आँचल पलकों सायों में ll


सुरमई बादल पनाह काजल निगाह घनेरो में l

कोई रंजिशें पैबंद ठगी अधखुली कपोलों में ll


बिखरे केशों लिपटी लट्टे झुर्रियां दर्पण लहरों में l

तस्वीरें धुंधली बदलती लकीरें हाथों मेहंदी में ll


ख्वाबों ख्यालों परिदृश्य फिराक दीवारों परिधि में l

लकीरें हाथों मिट गयी उलझन भरे अंधियारों में ll

Tuesday, December 2, 2025

एक आवाज

 खो गयी एक आवाज शून्य अंधकार सी कही l

सूखे पत्ते टूटने कगार हरे पेड़ों डाली से कही ll


उलझी पगडण्डियों सा अकेला खड़ा मौन कही l

अजनबी थे लफ्ज़ उस अल्फाज़ मुरीद से कही ll


तराशी चिंतन टकटकी निगाहें मूर्त अधूरी थी कही I

रूह चेतना थी नहीं शतरंज बिछी बाजी सी कही ll


सूखी गर्त रूखी स्याही टूटे कलम नोंक से हर कही l

पुरानी सलवटें कागज लिख ना पायी अरमान कही ll


परछाई साये सी मौन साथ चलती रही कदमों कही l

ढलान ठोकर गहरी समुद्रों उफनती लहरों सी कही ll


डूबी अधूरी बातें चिंतन बादलों पार सूर्यास्त सी कही I

मझधार गुमनामी छोड़ गयी बिखरे थे जज्बात कही ll