Sunday, December 7, 2025

परिदृश्य

हैरत हुई ना किश्तों उधार मिली यादों दरारों में l

इल्तिजा ठहरी नहीं चहरे शबनमी बूँदों दरारों में ll


खोई सलवटें सूने आसमाँ तुरपाई गलियारों में l

छुपा गयी गुस्ताखियां आँचल पलकों सायों में ll


सुरमई बादल पनाह काजल निगाह घनेरो में l

कोई रंजिशें पैबंद ठगी अधखुली कपोलों में ll


बिखरे केशों लिपटी लट्टे झुर्रियां दर्पण लहरों में l

तस्वीरें धुंधली बदलती लकीरें हाथों मेहंदी में ll


ख्वाबों ख्यालों परिदृश्य फिराक दीवारों परिधि में l

लकीरें हाथों मिट गयी उलझन अंधियारों में ll

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