स्पर्श सफर रूह ठहरा था जिस जिस्म अंगीकार को l
भस्मीभूत हो गया पंचतत्व कह अलविदा संसार को ll
वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव को l
ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम को ll
मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात को l
संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात को ll
अवध दीपावली तोरण सजी थी जिस शामें बहार को l
छोड़ किलकारी आँचल बिसरा गयी बचपन साँझ को ll
अतिरिक्त साँसे पास थी नहीं अंतिम सफर अरदास को l
वरदान अभिषप्त आँसू शान्त खो गये रूठे श्मशान को ll
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