Monday, December 15, 2025

अकेला क्यों

कुछ फटे बदरंगे अध लिखे पन्ने किताबों के संभाल रखने को दिल करता हैं l

इसकी कोई धुंधली तस्वीर जाने क्यों आज भी अक्सर अकेले में बातें करती हैं ll


हसरतें इसकी काले गुलाबों सी हवाओ को जब अपना दर्द बयां करती हैँ l

बिसरी मंजिलें सगर चंदन खुशबु यादें लपेटे पिंजर से आजाद हो आती हैं ll


धब्बे पानी के अंगुलियों जब सहलाती हैं चुभन अक्षरों को सिरहा जाती हैं l

लेखनी रिसता अश्रु सागर इसके पनघट छाया कतरा कतरा लहू बन आती हैं ll


शून्य इसके घाटों का पदचापों की पहचान रोशनी प्रतिबिंब बन दर्द दे जाती हैं l

मैं अकेला क्यों इस उलझन को इबादत की पहेली आदत और उलझा जाती हैं ll


हवाएँ साँसों की बातें इनसे जब करती हैं रूह थम सहम आती हैं l

परछाईं तलाश सुकून अहसासों की ग़म कुछ देर को भूला जाती हैं ll

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