Tuesday, June 8, 2010

बेईमान

तन्हा अकेला खड़ा था भीड़ में

कोई भी अपना ना था कहने को पास

जिसे भी माना अपना यार

वो ही निकला बेईमान

मुक़दर ही ऐसा मिला

यकीन कहीं खो गया

पुकारा खुदा को

मगर वो भी अनसुनी कर गया

हमको हमीसे अकेला कर गया

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