Tuesday, May 1, 2012

रूह

गुजरा बचपन जीन गलियों में

रूह बस्ती है उन पगडंडियों में

बात उस शहर की थी बड़ी निराली

हार पेड़ पोधो से थी पहचान हमारी

गली मोहलो की थी शान निराली

हँसी ठिठोली में गुजर जाती थी शाम सुहानी

खुले आसमां तले

तारे गिन गिन

सपनों में खो जाती थी रात सयानी

बस गयी इन सबों में रूह हमारी

गुजर गया बचपन

छुट गया शहर संगी साथी

पर रह गयी यादें वही कही भटकती

रूह बस्ती है इनमे जैसे हमारी

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