Monday, March 11, 2013

जंग का पिटारा

खुले जो जंग का पिटारा

कर्कश भरे कर्णभेदी

शब्दों के बाण चले

इस मुहँ जुबानी जंग से 

परवाह नहीं

कितने रिश्ते आहत हो जाए

मर्यादा जुबाँ भी ऐसी लाँघ जाए 

झड़ी बेशर्मी की लगा जाए

कटाक्ष दिलों को ऐसे भेद जाए

लहू जैसे पानी पानी हो जाए 

बच ना पाए संधि की कोई गुंजाईस

कई रिश्ते नाते इस दरमियाँ शहीद हो जाए

बदकिस्मती से अपने ही अपनों से हार जाए 

2 comments:

  1. Replies
    1. महोदय


      हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद


      सादर

      मनोज क्याल

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