Sunday, March 24, 2013

मैं

मैं तो वो गागर हु

जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु

मीठे बोलों की एक एक बूंदों से

प्रेम सागर बहाता जाता हु

हर सुधा कंठ को

प्रेम अमृत रसपान कराते जाता हु

मैं तो वो गागर हु

जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु

1 comment:

  1. सु-प्रेम सुधा की बूंद

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