Friday, March 8, 2013

सृष्टि

खिल रही नये पौध में कपोल प्यारी

मिल रही रूह जीवन से

अंकुरित हो रही नयी फसल तरारी

जल बन अमृत लहू

सींच रही कण कण में जीवन सुधा निराली

भर रही नये रंग प्रकृति

आत्मचित कर रही कायनात की सृष्टि  

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