Tuesday, August 1, 2017

कुछ पल

ऐ जिंदगी कुछ पल ठहर जा

इठलाने की उम्र अभी बाकी हैं

शरारतें अभी बहुत करनी बाकी हैं

माना दहलीज़ बचपन की गुज़र गयी

पर मुक़ाम बचपने का अब तलक बाकी हैं

यक़ीनन ठहराव उम्र को मिलेगा नहीं

लेकिन फ़िर से उस पड़ाव का छोर मिलेगा कहीं

अलविदा दुनिया को कहने से पहले

उम्मीद अब तलक ऐ बाकी हैं

वो शोखियाँ वो शरारतें

उनमें फ़िर से एक बार खो जाने का

जूनून आज भी इस उम्र पे हाबी हैं

क्या हुआ जो वक़्त गुजर गया

पर संग उसकी यादों के  जीने का

सफ़र तो अब तलक बाकी हैं

ऐ जिंदगी कुछ पल ठहर जा

इठलाने की उम्र अभी बाकी हैं





1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-08-2017) को गये भगवान छुट्टी पर, कहाँ घंटा बजाते हो; चर्चामंच 2685 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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