कारवाँ वो ठहर सा गया था
निकला था जो मुक़ाम की राह
अनजाने मोड़ पर ठिठक गया था
कुछ रहस्यमयी किरणों का उजाला सा था
खड़ा था कोई अनजाना उस मुक़ाम पे
व्याकुल था जो मुझमें समा जाने को
सम्मोहित सा हो गया मन बाबरा था
भटक मंजिल की राहों से
अनजानी प्रीत के इस सम्मोहन में
जिंदगी अपनी लूटा जाने को बेक़रार था
तिल्सिम का रहस्य भरा यह पिटारा था
ख़जाना संगीत का लुटा रहा था
इससे आगे अब मंजिल का निशा ना था
इसके जादू में मन बाबरा हो भटक रह था
मन बाबरा हो भटक रह था
निकला था जो मुक़ाम की राह
अनजाने मोड़ पर ठिठक गया था
कुछ रहस्यमयी किरणों का उजाला सा था
खड़ा था कोई अनजाना उस मुक़ाम पे
व्याकुल था जो मुझमें समा जाने को
सम्मोहित सा हो गया मन बाबरा था
भटक मंजिल की राहों से
अनजानी प्रीत के इस सम्मोहन में
जिंदगी अपनी लूटा जाने को बेक़रार था
तिल्सिम का रहस्य भरा यह पिटारा था
ख़जाना संगीत का लुटा रहा था
इससे आगे अब मंजिल का निशा ना था
इसके जादू में मन बाबरा हो भटक रह था
मन बाबरा हो भटक रह था
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-08-2018) को "सम्बन्धों के तार" (चर्चा अंक-3073) (चर्चा अंक-3059) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'