उम्र पीछे छूट गयी
रफ़्तार जिंदगी की
बचपन चुरा ले गयी
वो आसमानी छटा
वो सावन की घटा
बस यादें पुरानी
दिल की किताबों में सिमट रह गयी
सपनों की वो मंज़िल
चाँद सितारों सी हो गयी
कभी पास तो कभी दूर
मानों हाथों की लकीरों से
सपनों की ताबीर दूर हो गयी
नीलाम हो गयी वो मासूमियत भी
छलकती थी लड़कपन में जिनके
शरारतों भरी छटपटाहट
छोड़ उम्र की उस दहलीज को
विदा हो गयी रूह
बदल किस्मत की लकीरों को
रफ़्तार जिंदगी की
बचपन चुरा ले गयी
वो आसमानी छटा
वो सावन की घटा
बस यादें पुरानी
दिल की किताबों में सिमट रह गयी
सपनों की वो मंज़िल
चाँद सितारों सी हो गयी
कभी पास तो कभी दूर
मानों हाथों की लकीरों से
सपनों की ताबीर दूर हो गयी
नीलाम हो गयी वो मासूमियत भी
छलकती थी लड़कपन में जिनके
शरारतों भरी छटपटाहट
छोड़ उम्र की उस दहलीज को
विदा हो गयी रूह
बदल किस्मत की लकीरों को
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-08-2018) को "बता कहीं दिखा कोई उल्लू" (चर्चा अंक-3061) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'