शाकी का सुरूर चढ़ ना पाया
मोहब्बत का रंग उतर ना पाया
जाम जो पिला दिया नयनों ने
होश ग़ुम हो गए
मदहोशी के आँचल में
आलम इश्क़ के नशे का ऐसा जमा
बिन पिये ही दिल थिरकने लगा
ख़ुमारी इस लत की ऐसी लगी
हर आँखे मदिरा
और हर बाहें मधुशाला लगने लगी
तवज्जों मोहब्बत को क्या मिली
काफ़ूर मदिरालय की वयार हो गयी
जैसे सूरा के नशे से भी गहरी
इश्क़ के नशे की खुमारी चढ़ गयी
खुमारी चढ़ गयी
मोहब्बत का रंग उतर ना पाया
जाम जो पिला दिया नयनों ने
होश ग़ुम हो गए
मदहोशी के आँचल में
आलम इश्क़ के नशे का ऐसा जमा
बिन पिये ही दिल थिरकने लगा
ख़ुमारी इस लत की ऐसी लगी
हर आँखे मदिरा
और हर बाहें मधुशाला लगने लगी
तवज्जों मोहब्बत को क्या मिली
काफ़ूर मदिरालय की वयार हो गयी
जैसे सूरा के नशे से भी गहरी
इश्क़ के नशे की खुमारी चढ़ गयी
खुमारी चढ़ गयी
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (13-08-2018) को "सावन की है तीज" (चर्चा अंक-3062) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 14 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteतवज्जों मोहब्बत को क्या मिली
ReplyDeleteकाफ़ूर मदिरालय की वयार हो गयी
waaah. bahut khoob
वाह .।।
ReplyDeleteक्या बात है ...